कहानी: "माया और मिता की बहस"

Poemsinrainfall
3 min readMar 6, 2025

--

माया और मिता एक कैफे में बैठी थीं, गर्म चाय के कपों के साथ, और एक दिलचस्प बहस में उलझ गईं थीं। दोनों के बीच एक गहरी और गंभीर बात चल रही थी — भगवान पर विश्वास। मिता एक आस्तिक थी, जबकि माया नास्तिक।

मिता ने मुस्कराते हुए कहा, "तुम्हें कभी नहीं लगता कि इस ब्रह्मांड के पीछे कोई उच्च शक्ति होनी चाहिए?"

माया ने सिर झुका कर, धीरे से जवाब दिया, "मुझे नहीं लगता। मुझे विश्वास नहीं है कि भगवान हैं। यह सब कोई इंसान का बनाए हुए विचार हैं।"

मिता थोड़ी हैरान हुई, "पर अगर तुम यह मानो तो क्या तुम्हें किसी अर्थ का एहसास नहीं होता? किसी ने इस दुनिया को बनाया, किसी ने इसे संचालित किया।"

माया ने उसकी ओर देखा और कहा, "नहीं, मुझे कोई प्रमाण नहीं मिलता। तुम्हारे पास क्या है? तुम्हारे भगवान का अस्तित्व साबित करने के लिए क्या कोई ठोस प्रमाण है?"

मिता ने पल भर सोचा, फिर कहा, "भरोसा। विश्वास की बात है।"

माया हंसी, "लेकिन विश्वास सिर्फ एक एहसास है, और मैं किसी चीज़ पर विश्वास क्यों करूँ जो मैं देख या महसूस नहीं सकती?"

"यह ठीक वैसा ही है जैसे अगर मैं तुम्हारे पास आकर कहूँ, 'तुम क्यों विश्वास नहीं करती कि मैं उड़ सकता हूँ?' तुम क्या कहोगी?"

मिता थोड़ी चौंकी, "क्यों? क्या तुम पागल हो?"

"फिर तुम मुझसे कहोगी, 'तुम यह साबित नहीं कर सकते कि तुम उड़ सकते हो।'" माया ने फिर कहा, "मैंने यह कभी नहीं देखा, कभी महसूस नहीं किया कि कोई इंसान उड़ सकता है। तो क्या तुम मुझे बता सकती हो कि मैं उड़ नहीं सकता? तुम मुझे यह सिद्ध क्यों नहीं कर सकती?"

मिता ने गहरी सांस ली और कहा, "लेकिन तुम यह कर नहीं सकते। यह सच्चाई है, क्योंकि हमारे पास इसके लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।"

माया ने उसकी बात काटते हुए कहा, "ठीक वही तो भगवान के बारे में है। तुम्हारे पास कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि वह हैं। यह सिर्फ विश्वास है, और अगर मैं उस विश्वास पर विश्वास नहीं करना चाहती तो क्या?"

मिता चुप रही, उसकी आँखों में सवाल था। "तो क्या तुम विश्वास नहीं करतीं क्योंकि तुम्हें यह साबित नहीं किया जा सकता?"

"सही," माया ने कहा, "तुम विश्वास कर सकती हो, लेकिन अगर हम तर्क की बात करें, तो प्रमाण का भार हमेशा आस्तिक पर है।"

मिता ने उसकी बात पर विचार किया और फिर धीरे से मुस्कराते हुए कहा, "शायद तुम सही कहती हो, लेकिन क्या तुम मानती हो कि कभी किसी चीज़ को महसूस या देख कर उसे समझा जा सकता है?"

माया ने सिर झुका कर, चाय के कप को उठाया। "शायद, लेकिन मुझे इस बात पर यकीन है कि जो दिखता नहीं, उस पर विश्वास करना हमेशा मुश्किल होता है।"

"तो तुम क्या चाहती हो?" मिता ने पूछा। "क्या तुम चाहती हो कि हम अपनी नज़रों से जो भी देखते हैं, उस पर विश्वास करें?"

"तुम्हें सच बताऊं," माया ने कहा, "मैं चाहती हूं कि लोग सिर्फ उस चीज़ पर विश्वास करें जिसे वे देख सकते हैं, महसूस कर सकते हैं, और जिसे समझा जा सकता है। भगवान या किसी भी उच्च शक्ति को महसूस करना या देखना मेरे लिए आसान नहीं है।"

मिता ने थोड़ा चिढ़ कर कहा, "तो क्या तुम यह कहती हो कि हम सभी सिर्फ तर्क से चलें? क्या कभी आस्था के बिना जीवन जीने का तरीका नहीं हो सकता?"

माया ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, "आस्था के बिना भी जीवन हो सकता है, अगर हम अपनी सोच और तर्क पर विश्वास रखें। लेकिन अगर तुम्हें आस्था से बल मिलता है, तो मैं उसे सम्मान देती हूं।"

मिता और माया ने चाय के कप को खाली किया, दोनों की सोच में एक गहरी दूरी थी, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे की विचारधाराओं को समझने की कोशिश की।

--

--

Poemsinrainfall
Poemsinrainfall

Written by Poemsinrainfall

"When your heart is broken and betrayed you feel like you can't trust anyone" I felt that and realized it is correct - 🖤

No responses yet